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नमो॑ बि॒ल्मिने॑ च॒ कव॒चिने॑ च॒ नमो॑ व॒र्मिणे॑ च वरू॒थिने॑ च॒ नमः॑ श्रु॒ताय॑ च श्रुतसे॒नाय॑ च॒ नमो॑ दुन्दु॒भ्या᳖य चाहन॒न्या᳖य च ॥३५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। बि॒ल्मिने॑। च॒। क॒व॒चिने॑। च॒। नमः॑। व॒र्मिणे॑। च॒। व॒रू॒थिने॑। च॒। नमः॑। श्रु॒ताय॑। च॒। श्रु॒त॒से॒नायेति॑ श्रुतऽसे॒नाय॑। च॒। नमः॑। दु॒न्दु॒भ्या᳖य। च॒। आ॒ह॒न॒न्या᳖येत्याऽहन॒न्या᳖य। च॒ ॥३५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:35


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

योद्धाओं की रक्षा कैसे करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् और प्रजा के अध्यक्ष पुरुषो ! आप लोग (बिल्मिने) प्रशंसित धारण वा पोषण करने (च) और (कवचिने) शरीर के रक्षक कवच को धारण करने (च) तथा उन के सहायकारियों का (नमः) सत्कार करें (वर्मिणे) शरीररक्षा के बहुत साधनों से युक्त (च) और (वरूथिने) प्रशंसित घरोंवाले (च) तथा घर आदि के रक्षकों को (नमः) अन्नादि देवें (श्रुताय) शुभ गुणों में प्रख्यात (च) और (श्रुतसेनाय) प्रख्यात सेनावाले (च) तथा सेनाओं का (नमः) सत्कार (च) और (दुन्दुभ्याय) बाजे बजाने में चतुर बजन्तरी (च) तथा (आहनन्याय) वीरों को युद्ध में उत्साह बढ़ने के बाजे बजाने में कुशल पुरुष का (नमः) सत्कार कीजिये जिससे तुम्हारा पराजय कभी न हो ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - राजा और प्रजा के पुरुषों को चाहिये कि योद्धा लोगों की सब प्रकार रक्षा, सब के सुखदायी घर, खाने-पीने के योग्य पदार्थ, प्रशंसित पुरुषों का संग और अत्युत्तम बाजे आदि दे के अपने अभीष्ट कार्यों को सिद्ध करें ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

योद्धॄणां रक्षा कथं कार्येत्याह ॥

अन्वय:

(नमः) सत्करणम् (बिल्मिने) प्रशस्तं बिल्मं धारणं वा विद्यते यस्य तस्मै (च) (कवचिने) सम्बद्धं कवचं शरीररक्षासाधनं विद्यते यस्य तस्मै (च) (नमः) अन्नादिदानम् (वर्मिणे) बहूनि वर्माणि शरीररक्षासाधनानि विद्यन्ते यस्य तस्मै (च) (वरूथिने) प्रशस्तानि वरूथानि गृहाणि विद्यन्ते यस्य तस्मै। वरूथमिति गृहनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.४) (च) (नमः) सत्करणम् (श्रुताय) यः शुभगुणेषु श्रूयते तस्मै (च) (श्रुतसेनाय) श्रुता प्रख्याता सेना यस्य तस्मै (च) (नमः) सत्करणम् (दुन्दुभ्याय) दुन्दुभिषु वादित्रेषु साधवे (च) (आहनन्याय) वीररसाय वादित्रवादनेषु साधवे (च) ॥३५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजप्रजाजनाध्यक्षाः ! भवन्तो बिल्मिने च कवचिने च नमो वर्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय च नमः कुर्युर्दद्युर्यतो युष्माकं पराजयः कदापि न स्यात् ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - राजप्रजाजनैर्योद्धॄणां सर्वतो रक्षा, सर्वतः सुखप्रदानि गृहाणि, भोज्यपेयानि वस्तूनि, प्रशंसितजनानां सङ्गोऽत्युत्तमानि वादित्राणि च दत्त्वा स्वाभीष्टानि साधनीयानि ॥३५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व प्रजा यांनी योद्ध्यांचे सर्व प्रकारे रक्षण करावे. सर्वांना सुखकारक घरे, खाण्यापिण्याचे पदार्थ, चांगल्या माणसांची संगती व वाद्यवृंद इत्यादीनी देऊन आपले अभीष्ट कार्य सिद्ध करावे.